भारत कृषि के क्षेत्र में लगातार प्रगति कर रहा है। नई फसलों के और खेती के तरीके परीक्षण किए जा रहे हैं। इसके साथ ही, कुछ प्राचीन फसलें भी हैं जो आज भी बहुत लाभकारी साबित हो रही हैं। इनमें से एक प्रमुख फसल है रागी। यह एक ऐसी फसल है, जिसे करीब चार हजार साल पहले भारत में लाया गया था और यह अब भी बहुत लाभकारी मानी जाती है।
रागी की विशेषताएँ
रागी को फिंगर बाजरा, अफ्रीकी रागी, लाल बाजरा जैसे नामों से भी जाना जाता है। रागी की कई खासियतें हैं जो इसे एक लाभकारी फसल बनाती हैं। यह शुष्क और शीतल मौसम में भी आसानी से उगाई जा सकती है। रागी को भारी सूखा सहने की क्षमता है और यह ऊंचे इलाकों में भी उगाया जा सकता है। इस फसल की एक और खासियत यह है कि यह बहुत कम समय में तैयार हो जाती है, केवल 65 दिनों में इसे काटा जा सकता है। इसके अलावा, रागी में खनिजों, प्रोटीन, और महत्वपूर्ण अमीनो एसिड की उच्च मात्रा पाई जाती है, जिससे यह स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है। विशेष रूप से, रागी में 344 मिलीग्राम कैल्शियम और 408 मिलीग्राम पोटाशियम की मात्रा पाई जाती है, जो हड्डियों और शरीर के अन्य अंगों के लिए बेहद फायदेमंद है। इसके अतिरिक्त, रागी में लोहा (iron) की अधिक मात्रा भी होती है, जो कम हीमोग्लोबिन वाले लोगों के लिए बहुत फायदेमंद है।
उपयुक्त भूमि
रागी को कई तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन बलुई दोमट मिट्टी इसके अच्छे उत्पादन के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। भूमि का pH 5.5 से 8 के बीच होना चाहिए और भूमि में जलभराव नहीं होना चाहिए।
खेत की तैयारी
रागी की खेती की शुरुआत खेत की सही तैयारी से होती है। इसके लिए खेत की मिट्टी को पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें, ताकि पुरानी फसलों के अवशेष नष्ट हो सकें। इसके बाद पुरानी गोबर की खाद को मिट्टी में अच्छे से मिलाकर जैविक खाद तैयार करें। फिर खेत को कल्टीवेटर से 2-3 तिरछी जुताई करके खाद को मिट्टी में मिला दें। इसके बाद, खेत में पानी डालकर पलेवा करें और फिर से हल चलाकर मिट्टी को समतल करें।
उन्नत किस्में
रागी की कई उन्नत किस्में उपलब्ध हैं, जो कम समय में अधिक उत्पादकता देने के लिए विकसित की गई हैं। इनमें प्रमुख हैं:
- जेएनआर 852
- जीपीयू 45
- चिलिका
- जेएनआर 1008
- पीईएस 400
- वीएल 149
- आरएच 374
इन किस्मों के अलावा भी कई अन्य किस्में हैं जो अच्छे उत्पादन देने के लिए उगाई जाती हैं।
बीज की मात्रा और उपचार
बीज की मात्रा बुवाई की विधि पर निर्भर करती है। ड्रिल विधि से रोपाई करने पर प्रति हेक्टेयर 10 से 12 किलो बीज चाहिए। वहीं छिड़काव विधि से बीज बोने के लिए 15 किलो बीज की आवश्यकता होती है। बीजों को पहले थीरम, बाविस्टीन या कैप्टन जैसी दवाओं से उपचारित करें।
बीज रोपाई का तरीका और समय
बीजों की रोपाई दो विधियों से की जाती है: ड्रिल विधि और छिड़काव विधि। यदि छिड़काव विधि अपनाई जाती है, तो बीजों को समतल भूमि में छिड़क दिया जाता है और फिर दो बार हल्की जुताई करके बीजों को मिट्टी में मिला दिया जाता है। बीजों को लगभग 3 सेंटीमीटर नीचे दबा दिया जाता है। दूसरी विधि, ड्रिल विधि में, बीजों को कतारों में रोपित किया जाता है और हर कतार के बीच एक फीट की दूरी रखी जाती है, जबकि बीजों के बीच 15 सेंटीमीटर की दूरी होनी चाहिए।
रागी की बुवाई का सबसे उपयुक्त समय मई के अंत से जून तक होता है। कुछ स्थानों पर जून के बाद भी बुवाई की जाती है, और कुछ किसान इसे जायद के मौसम में भी उगाते हैं।
सिंचाई
रागी की खेती में सिंचाई की बहुत अधिक आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि यह मुख्यत: वर्षा आधारित फसल है। यदि वर्षा का पानी समय पर नहीं मिलता है, तो पहली सिंचाई एक से डेढ़ महीने के अंतराल में की जाती है। फिर, जब पौधों में फूल और दाने आना शुरू होते हैं, तो नमी की आवश्यकता बढ़ जाती है। इस समय सिंचाई हर 10 से 15 दिन के अंतराल में की जाती है।
उर्वरक की मात्रा
रागी को उर्वरकों की बहुत अधिक आवश्यकता नहीं होती। खेत की तैयारी करते समय पुराने गोबर की खाद को खेत में अच्छे से मिलाकर डालें। अंतिम जुताई के समय, रासायनिक खाद के रूप में प्रति हेक्टेयर डेढ़ से दो बोरे एनपीके (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश) का छिड़काव करें।
खरपतवार नियंत्रण
बीज रोपाई से पहले उचित मात्रा में आइसोप्रोट्यूरॉन या ऑक्सीफ्लोरफेन जैसे रासायनिक दवाओं का छिड़काव करें। खरपतवार नियंत्रण प्राकृतिक रूप से गुड़ाई के माध्यम से भी किया जा सकता है। रोपाई के 20 से 22 दिन बाद पहली गुड़ाई करें और फिर खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए दो बार और गुड़ाई करें।
फसल की कटाई
रागी की फसल को लगभग 110 से 120 दिन बाद काटने के लिए तैयार होती है। जब दाने पूरी तरह से सूख जाएं, तो पौधों के सिरों को काट लें और फिर मशीन की सहायता से दाने अलग करके बोरों में भर लें।
उत्पादन और लाभ
रागी की विभिन्न किस्मों का औसत प्रति हेक्टेयर उत्पादन लगभग 25 क्विंटल होता है। यदि बाजार में रागी की कीमत 2700 रुपये प्रति क्विंटल है, तो एक हेक्टेयर से किसान लगभग 60,000 रुपये की कमाई कर सकता है।
Conclusion
रागी की खेती एक प्राचीन लेकिन अत्यधिक लाभकारी और आसान तरीका है, जिससे किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं। इसकी खेती में अधिक लागत नहीं आती और यह कम समय में तैयार होती है। इसके पोषण संबंधी गुणों के कारण यह स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है। खेती से जुड़े सभी उपायों को सही ढंग से अपनाकर किसान रागी से अधिक लाभ कमा सकते हैं।
अतः, रागी एक ऐसी फसल है जो आधुनिक कृषि के साथ ही प्राचीन समय से लाभकारी साबित हो रही है, और इसका भविष्य बहुत उज्जवल दिखता है।