ट्राइकोडर्मा से समृद्ध खेती: मिट्टी की उर्वरता और फसल सुरक्षा का जैविक उपाय
ट्राइकोडर्मा से सुरक्षित खेती: जैविक खेती का शक्तिशाली हथियार
रासायनिक कीटनाशकों और फफूंदनाशकों का अधिक उपयोग मिट्टी की उर्वरता, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। ऐसे में ट्राइकोडर्मा (Trichoderma spp.) जैविक खेती का एक प्रभावी और सुरक्षित विकल्प बनकर उभरा है। यह एक प्राकृतिक लाभकारी कवक (फंगस) है, जो पौधों को कई प्रकार की बीमारियों और हानिकारक कीटों से बचाने में मदद करता है।
ट्राइकोडर्मा क्या है?
ट्राइकोडर्मा एक मित्र जीवाणु (फंगस) है, जो मिट्टी में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। यह हानिकारक फफूंद और कीटों को नियंत्रित करने के साथ-साथ पौधों की वृद्धि और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक होता है। यह जैविक खेती को बढ़ावा देने वाला प्रमुख कारक है, जो पारंपरिक खेती में रासायनिक पदार्थों की आवश्यकता को कम करता है।
ट्राइकोडर्मा से खेती को होने वाले लाभ
1) मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार
- मिट्टी में जैविक घटकों को बढ़ाकर उसकी उर्वरता बनाए रखता है।
- फसल अवशेषों को तेजी से विघटित कर मृदा पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाता है।
- मिट्टी में उपयोगी सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ाकर पोषक तत्वों का संतुलन बनाए रखता है।
2) पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना
- यह हानिकारक फफूंदों को नष्ट कर पौधों की रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाता है।
- जड़ों के चारों ओर सुरक्षा कवच बनाता है, जिससे वे अधिक मजबूत होती हैं।
- पौधों को जैविक रूप से पोषण प्रदान कर उनकी वृद्धि दर को बढ़ाता है।
3) हानिकारक कीटों और फफूंदनाशी बीमारियों से सुरक्षा
- यह कीटों के अंडों और लार्वा को नष्ट करने में सहायक होता है।
- फसल पर लगने वाले विभिन्न प्रकार के फफूंदजनित रोगों, जैसे जड़ सड़न, तना गलन और झुलसा रोग को नियंत्रित करता है।
- खेत में जैव विविधता को बनाए रखकर फसल को प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करता है।
4) रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता कम करता है
- ट्राइकोडर्मा का प्रयोग जैविक खेती को बढ़ावा देता है और पर्यावरण को सुरक्षित रखता है।
- मिट्टी में उपयोगी जीवाणुओं को संरक्षित रखता है, जिससे फसलों की उपज में वृद्धि होती है।
- लवणीयता को नियंत्रित कर मिट्टी की जल धारण क्षमता को सुधारता है।
ट्राइकोडर्मा का उपयोग कैसे करें?
1) बीज उपचार
- 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर प्रति किलोग्राम बीज में मिलाकर उपचार करें।
- इससे बीजों की अंकुरण दर बढ़ती है और प्रारंभिक संक्रमण से सुरक्षा मिलती है।
- बीज जनित रोगों को नियंत्रित कर पौधों को स्वस्थ बनाता है।
2) मिट्टी उपचार
- 5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को 50 किलोग्राम गोबर की खाद या वर्मीकंपोस्ट में मिलाकर प्रति एकड़ खेत में डालें।
- इससे मिट्टी में जैविक गतिविधियां बढ़ती हैं और पौधों को पोषण मिलता है।
- मिट्टी की संरचना में सुधार कर जल निकास को बढ़ावा देता है।
3) फसल पर छिड़काव
- 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
- यदि कीटों और रोगों का प्रकोप अधिक हो, तो 10-15 दिन के अंतराल पर दोहराएं।
- जैविक पोषक तत्वों की पूर्ति कर पौधों को हरा-भरा बनाए रखता है।
4) जड़ों का उपचार
- पौधों की जड़ों को 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति लीटर पानी के घोल में 30 मिनट तक डुबोकर लगाने से वे मजबूत होती हैं और रोगों से बचती हैं।
- पौधों की वृद्धि दर में वृद्धि होती है और वे अधिक स्वस्थ बनते हैं।
ट्राइकोडर्मा के अन्य लाभ
- यह मिट्टी में मौजूद लाभकारी जीवाणुओं की संख्या को बढ़ाकर जैव विविधता को बनाए रखता है।
- अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग से होने वाले प्रदूषण को कम करता है।
- सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता को बढ़ाकर पौधों की गुणवत्ता में सुधार करता है।
- फसल की जड़ों को मजबूत बनाकर जल धारण क्षमता में वृद्धि करता है।
निष्कर्ष
ट्राइकोडर्मा एक ऐसा बायोफर्टिलाइजर है जो किसान की खेती को एक प्रभावी समाधान के रूप में अपनाता है। यह जमीन की उर्वरता बनाए रखने, पौधों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, और रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता कम करने के लिए सहायक है। इसका उपयोग केवल फसल उत्पादकता बढ़ाता है ही, साथ ही पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है।
किसान अपनी खेती में इसे लागू कर सकते हैं और उन्हें अधिक प्राकृतिक और टिकाऊ उपज प्राप्त होती है। यह एक ऐसी जैविक तकनीक है जो किसानों को लाभ पहुंचाने के साथ-साथ जैविक खेती की ओर एक मजबूत कदम है। ट्राइकोडर्मा का सतत उपयोग कृषि क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है, जिससे न केवल फसल की गुणवत्ता में सुधार होगा बल्कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा।
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