परिचय
मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में रबी सीजन के अंत में किसान अपनी गेहूं, चना, सरसों जैसी मुख्य फसलों की कटाई कर लेते हैं। कटाई के बाद खेत अक्सर जून-जुलाई तक खाली पड़े रहते हैं, जब खरीफ सीजन की फसलें बोई जाती हैं। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, किसान इस अवधि का उपयोग मूंग की खेती करके अतिरिक्त मुनाफा कमा सकते हैं। मूंग की कुछ विशेष किस्में केवल 75-80 दिनों में तैयार हो जाती हैं और इनसे प्रति एकड़ 6-7 क्विंटल तक उत्पादन संभव है।
मूंग की खेती क्यों करें?
- अतिरिक्त आय का स्रोत: खाली खेतों का उपयोग कर किसान अपनी वार्षिक आय में बढ़ोतरी कर सकते हैं।
- कम लागत, अधिक मुनाफा: मूंग की खेती में बहुत अधिक लागत नहीं आती, जिससे यह किसानों के लिए फायदेमंद साबित होती है।
- मृदा की उर्वरता में सुधार: मूंग की फसल मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाकर उसकी उर्वरता को बनाए रखती है।
- कम समय में तैयार: मूंग की उन्नत किस्में मात्र 75-80 दिनों में तैयार हो जाती हैं, जिससे खरीफ फसलों की बोवाई पर कोई असर नहीं पड़ता।
- जल की कम आवश्यकता: मूंग की खेती के लिए सिंचाई की कम जरूरत होती है, जिससे यह गर्मी के मौसम में भी लाभदायक होती है।
खरगोन में मूंग की खेती के लिए उपयुक्त किस्में
खरगोन कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. राजीव सिंह के अनुसार, किसानों को मूंग की उन किस्मों का चयन करना चाहिए जो कम समय में अधिक उत्पादन दें। निम्नलिखित उन्नत किस्में किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती हैं:
- IPM 410-3 (शिखा) – 75-80 दिनों में तैयार होने वाली यह किस्म अच्छी उपज देती है।
- IPM 205-7 (विराट) – कम पानी में भी बेहतर उत्पादन देने वाली किस्म।
- MH 421 – तेज़ी से बढ़ने वाली और कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली किस्म।
मूंग की खेती के लिए आवश्यक तैयारी
- भूमि का चयन: मूंग की खेती के लिए दोमट और बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। खेत का उचित जल निकास होना चाहिए ताकि जलभराव न हो।
- बुआई का समय: मार्च-अप्रैल में रबी फसल की कटाई के तुरंत बाद मूंग की बुआई करना सबसे उपयुक्त समय होता है।
- बीज की मात्रा: प्रति एकड़ 8-10 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
- बुआई विधि: कतारों में बुआई करने से फसल की देखभाल और निराई-गुड़ाई में आसानी होती है। कतार से कतार की दूरी 25-30 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 8-10 सेंटीमीटर की दूरी रखना चाहिए।
- सिंचाई व्यवस्था: गर्मी की मूंग के लिए हल्की सिंचाई आवश्यक होती है। बीज अंकुरण के समय और फूल आने के समय दो सिंचाइयां पर्याप्त होती हैं।
- खाद एवं उर्वरक: मूंग की फसल के लिए 10-15 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30-40 किलोग्राम फास्फोरस और जैविक खाद का उपयोग करना फायदेमंद होता है।
- रोग एवं कीट नियंत्रण: मूंग की फसल में सफेद मक्खी और इल्ली जैसी समस्याएं आ सकती हैं, जिन्हें जैविक कीटनाशकों से नियंत्रित किया जा सकता है। इसके अलावा, उचित फसल चक्र अपनाने से रोगों का प्रकोप कम होता है।
कटाई एवं उत्पादन
मूंग की फसल 75-80 दिनों में पूरी तरह पककर तैयार हो जाती है। जब फली का रंग हल्का पीला होने लगे तो कटाई करनी चाहिए। औसतन प्रति एकड़ 6-7 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
अतिरिक्त सुझाव:
- खेती में वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग कर उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है।
- जैविक खाद और प्राकृतिक कीटनाशकों का प्रयोग कर मिट्टी की गुणवत्ता बनाए रखें।
- फसल कटाई के बाद मूंग की पकी हुई फलियों को अच्छी तरह सुखाकर भंडारण करें ताकि गुणवत्ता बनी रहे।
निष्कर्ष:
खरगोन के किसान मूंग की खेती अपनाकर अपनी आय में बढ़ोतरी कर सकते हैं। कम समय और लागत में तैयार होने वाली यह फसल न केवल आर्थिक रूप से लाभदायक है, बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ाती है। सही समय पर सही किस्म का चयन कर किसान गर्मी के मौसम में भी खेतों से मुनाफा कमा सकते हैं।
