कैसे पानामा विल्ट रोग को नियंत्रित करें: केले के उत्पादन को बचाने के लिए वैज्ञानिक उपाय
Banana Planting के लिए सुझाव: बिहार सहित भारत के अन्य राज्यों में पानामा विल्ट और फ्लयूजेरियम विल्ट की तेजी से फैलने से केले की प्रमुख किस्मों का अस्तित्व खतरे में है। इन रोगों का फैलाव इतना तेज़ हो गया है कि अब यह इन फसलों की उत्पादकता और अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा बन गए हैं। विशेष रूप से, बिहार में यह समस्या अधिक बढ़ी है, और इसके कारण केले की खेती करने वाले किसानों को बहुत नुकसान उठाना पड़ रहा है।
Panama wilt रोग:
बिहार में केले की खेती की बहुत सी संभावनाएँ हैं, लेकिन पानामा विल्ट/फ्यूजेरियम विल्ट नामक घातक रोग इसके निरंतर उत्पादन और उत्पादकता में सबसे बड़ी बाधा है। Fusarium oxysporum f.sp. cubense नामक मृदाजनित कवक यह बीमारी पैदा करता है, जो पौधों की संवहनी ऊतकों (संवहनी ऊतक) को प्रभावित करके पौधे को पूरी तरह से नष्ट कर देता है। यह कवक मिट्टी में लंबे समय तक जीवित रहता है और बहुत आसानी से स्वस्थ पौधों में फैल जाता है, जिसके कारण पूरी फसल का नुकसान हो सकता है।
बिहार में पानामा विल्ट का प्रकोप और प्रभावित प्रजातियां
पानामा विल्ट का प्रकोप बिहार में विशेष रूप से देखा जाता है। इससे मुख्य रूप से लंबी प्रजातियों के केले प्रभावित होते हैं, जिनमें प्रमुख रूप से मालभोग की किस्म है, जो अब विलुप्ति के कगार पर है। इस रोग के कारण यह प्रजाति 64% तक प्रभावित हो चुकी है। चौंकाने वाली बात यह है कि अल्पान और कोठिया, जो अन्य राज्यों में इस रोग से बचते थे, अब बिहार में भी इस रोग से पीड़ित हो गए हैं।
इसके अलावा, बिहार में बौनी जातियों बसराइ, रोबस्टा और ग्रैंड नैन में यह रोग तेजी से फैल रहा है, जो अब एक नए प्रकार के TR4 (Tropical Race 4) के रूप में सामने आ रहा है। यह बीमारी अब तक अधिकतर प्रजातियों के लिए खतरनाक साबित हो चुकी है।
नव विकसित प्रबंधन तकनीक:
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा और अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (फल) ने विज्ञान-आधारित प्रभावी तकनीक बनाई है जो इस घातक बीमारी को नियंत्रित करेगी। इन तकनीकों के माध्यम से केले की खेती को पानामा विल्ट रोग से बचाया जा सकता है।
रोग के प्रबंधन हेतु अनुशंसित उपाय:
1) रोगमुक्त प्रकंद (sucker) या ऊतक संवर्धन से तैयार पौध चुनें: रोपण से पहले खेत से रोगग्रस्त पौधों को हटाना चाहिए। यह सुनिश्चित करना बेहद आवश्यक है कि संक्रमित पौधे खेत में न रहें।
2) गड्ढे को तैयार करना: रोपण से पहले गड्ढे में 250 ग्राम वर्मी कम्पोस्ट या नीम खली डालें, जो पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करेगा।
3) प्राकृतिक उपचार: 30 मिनट तक रोपण से पहले प्रकंदों को 0.2% कार्बेन्डाजिम घोल में डुबोकर उपचार करें, जिससे इन पर किसी प्रकार का संक्रमण न हो।
4) क्षेत्रीय उपचार: रोपण के दो, चार और छह महीने बाद मिट्टी को 0.2% कार्बेन्डाजिम घोल से अच्छी तरह भिगोएं। तीन महीने, पांच महीने और सात महीने बाद 2% कार्बेन्डाजिम घोल (30 मिलीलीटर) इंजेक्शन दें। इससे मिट्टी में मौजूद रोगजनकों का खात्मा होगा।
5) रोग नियंत्रण का प्रदर्शन: Race 1 और Race 2 ने पानामा विल्ट रोग को 88% कम किया। हालांकि, यह प्रणाली Tropical Race 4 (TR4) के नियंत्रण में पूरी तरह से कामयाब नहीं रही, लेकिन यह रोग को काफी हद तक कम करने में सफल रही।
राष्ट्रीय स्तर पर तकनीक की प्रभावशीलता और परीक्षण:
इस तकनीक का प्रभावशीलता परीक्षण भारत के विभिन्न अनुसंधान केंद्रों पर किया गया, जिनमें शामिल हैं:
1) पूसा (बिहार)
2) कोयम्बटूर (तमिलनाडु)
3) जोरहाट (असम)
4) कन्नारा (केरल)
5) मोहनपुर
6) कोवूर (आंध्र प्रदेश) – इस केंद्र पर तकनीक प्रभावी नहीं पाई गई।
अधिकांश केंद्रों पर यह तकनीक रोग नियंत्रण में अत्यधिक प्रभावी सिद्ध हुई और केले की पैदावार में महत्वपूर्ण सुधार दर्ज किया गया।