भारत में जैविक कीटनाशकों की खपत में वृद्धि एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन रासायनिक कीटनाशकों की निरंतर खपत यह दर्शाती है कि जैविक कृषि की ओर बदलाव बहुत धीमा हो रहा है।
भारत में कीटनाशकों की खपत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह कृषि उत्पादन, खाद्य सुरक्षा और पर्यावरणीय स्थिरता से सीधे जुड़ा हुआ है। जैविक कीटनाशकों का उपयोग धीरे-धीरे बढ़ रहा है, जबकि रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग पिछले नौ वर्षों में स्थिर रहा है। हालाँकि, पारंपरिक रासायनिक कीटनाशकों की तुलना में जैविक कीटनाशकों की कुल खपत अभी भी बहुत कम है।
रासायनिक कीटनाशकों का निरंतर उपयोग:
पिछले नौ वर्षों में भारत ने औसतन 60,000 मीट्रिक टन रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग किया है। यह प्रवृत्ति दिखाती है कि किसान अभी भी रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भर हैं। भारत में इनकी खपत 1953–1954 में मात्र 154 मीट्रिक टन थी, जो 1994–1995 में 80,000 मीट्रिक टन हो गई। हालाँकि, सरकारी नीतियों, जैविक विकल्पों का प्रोत्साहन और एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) जैसे उपायों के कारण यह 1999-2000 में घटकर 54,135 मीट्रिक टन रह गया।
2000 के दशक के बाद, रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग कम हो गया। २०१२-१३ में इसकी सबसे कम मात्रा 45,619 मीट्रिक टन थी, जबकि २०१७-१८ में इसकी सबसे अधिक मात्रा 63,406 मीट्रिक टन थी। इससे स्पष्ट होता है कि कृषि उत्पादकता में रासायनिक कीटनाशकों का अभी भी महत्वपूर्ण योगदान है और किसान धीरे-धीरे रासायनिक कीटनाशकों को अपना रहे हैं।
रासायनिक कीटनाशकों की खपत क्षेत्र में:
महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश भारत में रासायनिक कीटनाशकों का लगभग 40% खपत करते हैं। सालाना 10,000 मीट्रिक टन से अधिक रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग इन दोनों राज्यों ने किया है। 2000–2015 के बाद से, इन राज्यों ने कुल खपत में 38–42 प्रतिशत से 42.4 प्रतिशत का योगदान दिया है। तीसरे स्थान पर पंजाब है, जो औसतन 5525 मीट्रिक टन से अधिक खपत करता है।
जैविक कीटनाशकों का बढ़ता रुझान:
सरकार द्वारा जैविक कृषि को बढ़ावा देने के प्रयासों और किसानों में बढ़ती जागरूकता के चलते, 2015-16 और 2021-22 के बीच जैविक कीटनाशकों की खपत 40% से अधिक बढ़ी है। 2021-22 में इनकी राष्ट्रीय खपत 8,898.92 मीट्रिक टन हो गई, जबकि 2015-16 में 6,148 मीट्रिक टन थी। यह वृद्धि लगभग ४५ प्रतिशत है। जैविक कीटनाशक अभी भी कुल कीटनाशक खपत में कम हैं। 2015-16 में जैविक कीटनाशकों का योगदान 10.8% था, जबकि 2021-22 में यह केवल 15% था। यह दिखाता है कि जैविक कीटनाशकों का उपयोग बढ़ रहा है, लेकिन रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग अभी भी अधिक है।
जैविक कीटनाशकों का खपत क्षेत्र में:
भारत में जैविक कीटनाशकों का प्रयोग असमान है। पश्चिम बंगाल, राजस्थान और महाराष्ट्र इस क्षेत्र में अग्रणी हैं। 2019 से 2020 तक महाराष्ट्र जैविक कीटनाशकों का सबसे बड़ा उपभोक्ता था, लेकिन 2016 से 2017 तक इसकी खपत में कमी आई। 2016-17 में महाराष्ट्र ने जैविक कीटनाशकों का 1,454 मीट्रिक टन उपयोग किया था, लेकिन पिछले दो वर्षों में यह 1,000 मीट्रिक टन से कम था। 2021-22 में इसका राष्ट्रीय खपत में योगदान 10.5% रह गया।
इसके विपरीत, राजस्थान अब जैविक कीटनाशकों का सबसे बड़ा खरीदार है। २०२०-२१ के बाद से यह राज्य महाराष्ट्र को पीछे छोड़ दिया है। पिछले तीन वर्षों में पश्चिम बंगाल ने 1,000 मीट्रिक टन से अधिक जैविक कीटनाशकों का उपयोग किया है।
पूर्वोत्तर राज्यों में जैविक कीटनाशकों का उपयोग बढ़ा है। 2015-16 से 2021-22 के बीच, सिक्किम और मेघालय ने जैविक कीटनाशकों की खपत में लगभग 100 गुना वृद्धि दर्ज की। 2021-22 में इनकी वार्षिक खपत 1,268 मीट्रिक टन हो गई, जो राष्ट्रीय खपत का 14.2% था, लेकिन 2015-16 में यह 15 मीट्रिक टन से भी कम था।
रासायनिक और जैविक कीटनाशकों की वृद्धि के कारण:
कृषि उत्पादकता के बारे में चिंता – भारतीय किसान अभी भी रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भर हैं, जो अधिक उपज और त्वरित प्रभाव देते हैं। किसान जैविक कीटनाशकों को प्राथमिकता नहीं देते क्योंकि उनका प्रभाव धीमा होता है।
सरकारी नियम और जनजागरूकता— जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने कई योजनाएँ बनाई हैं, लेकिन जागरूकता और सही मार्गदर्शन की कमी के कारण कई किसान अभी भी जैविक कीटनाशकों को अपनाने में संकोच कर रहे हैं।
मूल्य और उपलब्धता— रासायनिक कीटनाशक सस्ता और आसानी से उपलब्ध होते हैं, जबकि जैविक कीटनाशक आमतौर पर महंगे और कम उपलब्ध होते हैं।
भूक्षेत्र की भौगोलिक स्थिति कुछ स्थानों में जलवायु और मिट्टी की स्थिति ऐसी है कि जैविक कीटनाशकों का प्रभाव कम होता है, इसलिए किसानों को पारंपरिक उपायों पर निर्भर करना पड़ता है।