कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली फसल
सहारनपुर के किसान इन दिनों कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली खेती को प्राथमिकता दे रहे हैं। विशेष रूप से सहारनपुर के गंगोह विधानसभा क्षेत्र के गांव खण्डलाना के किसान रविंद्र कुमार सैनी ने अपनी मेथी की खेती से यह साबित कर दिया है कि बिना किसी अतिरिक्त लागत के भी खेती से अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।
रविंद्र कुमार सैनी बिना किसी रासायनिक खाद के जैविक विधि से मेथी की खेती कर रहे हैं। उनकी फसल केवल पानी की सही मात्रा से ही अच्छी तरह तैयार हो जाती है। मेथी की मांग पूरे वर्ष बनी रहती है, लेकिन सर्दियों में इसकी खपत सबसे अधिक होती है। लोग इसे पकोड़ी, सब्जी, पराठे और पशुओं के चारे के रूप में भी उपयोग करते हैं।
मेथी की खेती के लिए अनुकूल जलवायु और मिट्टी
मेथी ठंडे मौसम की फसल है, जो 10 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान में अच्छी तरह बढ़ती है। यह कम पानी में भी बेहतर उत्पादन देती है, जिससे किसान इसके लिए अधिक सिंचाई करने से बच सकते हैं। इसकी खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। मिट्टी का पीएच स्तर 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए और जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी आवश्यक है।
बीज की बुवाई और खेत की तैयारी
मेथी की अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए खेत की सही तैयारी करना जरूरी है। पहले खेत की गहरी जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी बना लें, जिससे फसल की जड़ें आसानी से फैल सकें। बुवाई से पहले हल्की सिंचाई करें ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे।
बीजों को सीधे खेत में बोया जाता है। प्रति एकड़ 8 से 10 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बीजों को कतारों में बोना चाहिए और कतारों के बीच की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। बुवाई के लिए अक्टूबर से नवंबर का समय सबसे उपयुक्त होता है।
सिंचाई और खाद प्रबंधन
मेथी की फसल को बहुत अधिक पानी की जरूरत नहीं होती। पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करनी चाहिए। इसके बाद 10 से 12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। अत्यधिक पानी देने से जड़ों में सड़न की समस्या हो सकती है।
खास बात यह है कि इस फसल की खेती में किसी भी प्रकार के रासायनिक खाद की आवश्यकता नहीं होती। किसान जैविक विधि से खेती कर सकते हैं, जिसमें गोबर की खाद, वर्मी कम्पोस्ट या जैविक खाद का प्रयोग किया जाता है।
फसल की देखभाल और रोग नियंत्रण
मेथी की फसल को अधिक देखभाल की जरूरत नहीं होती, लेकिन कुछ कीट और रोग इसे प्रभावित कर सकते हैं। पत्तियों में झुलसा रोग लग सकता है, जिससे बचने के लिए नीम के तेल या जैविक फफूंदनाशक का छिड़काव किया जा सकता है।
इसके अलावा, थ्रिप्स और एफिड्स जैसे कीट भी मेथी की पत्तियों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इनके नियंत्रण के लिए जैविक कीटनाशकों का उपयोग किया जा सकता है।
फसल की कटाई और उत्पादन
बुवाई के 30 से 40 दिन बाद मेथी की पत्तियां तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती हैं। जब पत्तियां अच्छी तरह विकसित हो जाएं और हरी बनी रहें, तभी उन्हें काटना चाहिए। अगर बीज के लिए खेती की जा रही हो, तो फसल को पूरी तरह पकने देना चाहिए और जब पत्ते पीले पड़ने लगें, तब कटाई करनी चाहिए।
प्रति एकड़ लगभग 50 से 60 क्विंटल हरी मेथी की उपज प्राप्त की जा सकती है। यदि बीज उत्पादन किया जाए, तो प्रति एकड़ 10 से 12 क्विंटल दानेदार मेथी प्राप्त की जा सकती है।
मेथी की मार्केटिंग और बिक्री
मेथी की पत्तियों की मांग पूरे साल बनी रहती है, लेकिन सर्दियों में इसका अधिक उपयोग होता है। किसान इसे स्थानीय मंडियों, होलसेल बाजारों और सुपरमार्केट में बेच सकते हैं। जैविक मेथी की मांग भी बढ़ रही है, जिससे जैविक खेती करने वाले किसानों को इसका अधिक लाभ मिल सकता है।
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए भी किसान अपनी उपज को बड़े बाजारों तक पहुंचा सकते हैं। इसके लिए उन्हें किसानों के लिए उपलब्ध विभिन्न सरकारी योजनाओं और कृषि उत्पाद विपणन विकल्पों की जानकारी लेनी चाहिए।
मेथी की खेती से होने वाले संभावित लाभ
मेथी की खेती कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली होती है। इसके उत्पादन में ज्यादा खर्च नहीं आता और यह बिना रासायनिक खाद के भी अच्छी पैदावार देती है। इस फसल को पशु चारे के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे यह किसानों के लिए और भी फायदेमंद हो जाती है।
इसकी बाजार में हमेशा मांग बनी रहती है और सही मूल्य मिलने से किसान अच्छा लाभ कमा सकते हैं।
निष्कर्ष
मेथी की खेती उन किसानों के लिए बेहतरीन विकल्प है, जो कम लागत में अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं। बिना रासायनिक खाद और कम पानी में तैयार होने वाली इस फसल से किसान अच्छा लाभ कमा सकते हैं। यदि सही तकनीक और जैविक विधि से खेती की जाए, तो यह एक सफल व्यवसाय बन सकता है।